
संजय प्रजापति
राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य सह संयोजक नार्थईस्ट राज्य , एनसीपी
भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना में प्रजापति समाज, जिसे कुम्हार या कुलाल समाज के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अपनी शिल्पकारी और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध यह समाज अब राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है। प्रजापति समाज का राजनीतिक नेतृत्व न केवल सामुदायिक हितों की रक्षा कर रहा है, बल्कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में भी प्रभावी भूमिका निभा रहा है।
प्रजापति समाज: सांस्कृतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
प्रजापति समाज का इतिहास प्राचीन भारत से गहराई से जुड़ा है। यजुर्वेद में ‘कुलाल’ शब्द का उल्लेख इस समुदाय की शिल्पकारी कला और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। मिट्टी को आकार देकर बर्तन, मूर्तियां और अन्य उपयोगी वस्तुएं बनाने की कला ने प्रजापति समाज को भारतीय सभ्यता का एक अभिन्न अंग बनाया है। इस समाज की आराध्य देवी श्री श्रीयादे माता हैं, जिनके मंदिर, विशेष रूप से राजस्थान के चारभुजा जी में, समाज के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। माघ शुक्ल दूज को मनाई जाने वाली श्री श्रीयादे माता की जयंती समाज की एकता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है। ये धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन समाज को संगठित करने और सामाजिक जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो राजनीतिक नेतृत्व के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
प्रजापति समाज का राजनीतिक नेतृत्व: उदय और प्रभाव
भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में प्रजापति समाज का राजनीतिक नेतृत्व धीरे-धीरे उभर रहा है। कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा में, प्रजापति समाज को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का दर्जा प्राप्त है। मंडल आयोग की सिफारिशों और आरक्षण नीतियों ने इस समाज को राजनीतिक भागीदारी के लिए प्रोत्साहित किया है। स्थानीय पंचायतों से लेकर विधानसभाओं और संसद तक, प्रजापति समाज के नेता अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में प्रजापति समाज के कई नेता समाजवादी पार्टी (SP), बहुजन समाज पार्टी (BSP), और भारतीय जनता पार्टी (BJP) जैसे प्रमुख दलों के माध्यम से सक्रिय हैं। राजस्थान और हरियाणा में भी प्रजापति समाज के नेता कैबिनेट मंत्रियों के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं, जो समाज की बढ़ती राजनीतिक ताकत को दर्शाता है। ये नेता न केवल अपने समुदाय के हितों की रक्षा करते हैं, बल्कि शिक्षा, रोजगार, और सामाजिक समरसता जैसे व्यापक मुद्दों पर भी काम करते हैं।
माटी कला बोर्ड: राष्ट्रीय स्तर पर आवश्यकता
प्रजापति समाज का पारंपरिक व्यवसाय मिट्टी के बर्तनों और शिल्पकारी से जुड़ा है। इस कला को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए कई राज्यों में माटी कला बोर्ड स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान में श्री यादे माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष प्रहलाद राय टाक ने समाज के शिल्पकारों को सशक्त बनाने के लिए कई पहल शुरू की हैं, जैसे 1000 इलेक्ट्रिक चाक और मिट्टी गूंथने की मशीनों का वितरण, सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना, और माटी कला कार्ड का पंजीकरण। हरियाणा में भी माटी कला बोर्ड के गठन ने समाज को अपनी बात रखने में सुविधा प्रदान की है, जैसा कि डिप्टी स्पीकर रणवीर सिंह गंगवा और चेयरमैन ईश्वर मालवाल के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में देखा गया। मध्य प्रदेश में रामदयाल प्रजापति जैसे नेताओं ने माटी कला बोर्ड के माध्यम से समाज के हितों को बढ़ावा दिया।हालांकि, माटी कला बोर्ड का दायरा अभी तक राज्य स्तर तक सीमित है। प्रजापति समाज के शिल्पकारों को राष्ट्रीय स्तर पर सशक्त बनाने के लिए एक राष्ट्रीय माटी कला बोर्ड की स्थापना आवश्यक है। ऐसा बोर्ड न केवल मिट्टी के शिल्प को आधुनिक तकनीकों और बाजारों से जोड़ सकता है, बल्कि समाज के शिल्पकारों को देशव्यापी नीतियों और योजनाओं का लाभ भी दिला सकता है। राष्ट्रीय स्तर का बोर्ड प्रजापति समाज के लिए एक एकीकृत मंच प्रदान करेगा, जहां उनकी समस्याओं, जैसे मिट्टी की उपलब्धता, बाजार पहुंच, और वित्तीय सहायता, को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है। साथ ही, यह बोर्ड पर्यावरण-अनुकूल मिट्टी के उत्पादों को बढ़ावा देकर समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है, जो प्रधानमंत्री के ‘लोकल फॉर वोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण के अनुरूप होगा।
राजनीतिक नेतृत्व की उपलब्धियां
प्रजापति समाज का राजनीतिक नेतृत्व कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। पहला, यह नेतृत्व समाज के आर्थिक और सामाजिक उत्थान के लिए नीतियों को प्रभावित कर रहा है। राजस्थान और हरियाणा में कैबिनेट मंत्रियों और बोर्ड अध्यक्षों जैसे प्रहलाद राय टाक और ईश्वर मालवाल ने समाज के लिए सरकारी योजनाओं को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूसरा, नेतृत्व सामाजिक जागरूकता और एकता को बढ़ावा दे रहा है। अखिल भारतीय प्रजापति कुम्भकार महासभा जैसे संगठन और श्री श्रीयादे माता के मंदिर सामाजिक और राजनीतिक संगठन के लिए मंच प्रदान करते हैं। तीसरा, नेतृत्व ने शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे समाज के युवा आधुनिक अर्थव्यवस्था में अपनी जगह बना रहे हैं।
चुनौतियां:
प्रजापति समाज के राजनीतिक नेतृत्व के सामने कई चुनौतियां हैं। पहली चुनौती सामाजिक और आर्थिक पिछड़ापन है। यद्यपि समाज को OBC का दर्जा प्राप्त है, फिर भी सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों तक पूरी तरह नहीं पहुंच पाता। दूसरी चुनौती समाज के भीतर क्षेत्रीय और उप-जातिगत भेदभाव है, जो सामुदायिक एकता को प्रभावित करता है। तीसरी चुनौती परंपरागत शिल्प का ह्रास है, क्योंकि शहरीकरण और औद्योगिकीकरण ने मिट्टी के बर्तनों की मांग को कम किया है। चौथी चुनौती युवा और महिला नेतृत्व की कमी है। पांचवीं चुनौती डिजिटल साक्षरता की कमी है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में समाज की राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता को सीमित करती है।
समाधान और भविष्य की दिशा
प्रजापति समाज के राजनीतिक नेतृत्व को अपनी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए कई कदम उठाने होंगे। पहला, माटी कला बोर्ड को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की मांग को जोर-शोर से उठाना होगा। ऐसा बोर्ड समाज के शिल्पकारों को एकीकृत मंच प्रदान करेगा और उनकी कला को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने में मदद करेगा। दूसरा, डिजिटल तकनीक का उपयोग बढ़ाना होगा। प्रजापति इन्फॉर्मेशन जैसे मंच और सोशल मीडिया समाज को संगठित करने और उनकी समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में सहायक हो सकते हैं।
(लेखक के निजी विचार हैं। )