
अलीनगर विधानसभा की राजनीति हमेशा से समीकरणों के लिए जानी जाती रही है। यहां जातीय और सामाजिक संतुलन ही जीत-हार का आधार बनता रहा है। लेकिन मौजूदा हालात में सबसे बड़ा सवाल खड़ा हुआ है—क्या भाजपा अब इस क्षेत्र में राजद के भरोसे ही आगे बढ़ना चाहती है?
यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि भाजपा के जिन नेताओं को यहां आगे बढ़ाया गया है, उनका राजनीतिक अतीत साफ-साफ राजद से जुड़ा रहा है। नेता कभी राजद के चेहरे रहे हैं और आज भाजपा में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। विडंबना यह है कि भाजपा इन्हीं पर निर्भर होकर अलीनगर जीतने का सपना देख रही है। लेकिन जब किसी पार्टी का भविष्य ऐसे नेताओं पर टिका हो जो कभी उसके सबसे बड़े विरोधी दल के हिस्से रहे हों, तो यह स्थिति खुद-ब-खुद सवाल खड़े करती है।
इसी बीच एक गंभीर आरोप सामने आया है। कहा जा रहा है कि भाजपा में शामिल हुए राजद पृष्ठभूमि वाले इन नेताओं ने बूथ स्तर पर अपने पुराने साथियों को ही तरजीह दी है। आरोप है कि बीएलओ की नियुक्ति में राजद समर्थकों को जगह दी गई और इसके चलते एनडीए समर्थक मतदाताओं के नाम बड़ी संख्या में मतदाता सूची से काटे गए। यह आरोप चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, लेकिन यदि इसमें सच्चाई का अंश भी है तो यह भाजपा के लिए बेहद चिंताजनक स्थिति है। विश्लेषकों का मानना है कि इससे यह संकेत मिलता है कि यदि इन नेताओं को भाजपा से टिकट नहीं मिला तो वे अपने पुराने रिश्तों और तथाकथित भाजपा समर्थकों के सहारे पार्टी को ही चुनौती दे सकते हैं।
अगर भाजपा अपनी हठधर्मिता पर अड़ी रही और सीट अपने पास रखने की ज़िद करती रही, तो अलीनगर में पराजय लगभग तय है। इतना ही नहीं, इसका नकारात्मक संदेश दरभंगा की अन्य सीटों तक जाएगा। मतदाता मान लेंगे कि भाजपा अपने संगठन को दुरुस्त करने की बजाय उन्हीं चेहरों पर भरोसा कर रही है जिनकी जड़ें राजद में रही हैं। इससे राजद को सीधा लाभ होगा और एनडीए के भीतर असंतोष भी बढ़ेगा।
अलीनगर विधानसभा सीट भाजपा के लिए आत्ममंथन का आईना है। अब निर्णय भाजपा को करना है कि वह सचमुच एनडीए की मजबूती चाहती है या फिर राजद से आए नेताओं के भरोसे अपनी राजनीति को ढकेलने पर ही संतोष करेगी। एक ओर जदयू के पास ऐसे समर्पित चेहरे हैं जो एनडीए की जीत सुनिश्चित कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा का दांव उन्हीं नेताओं पर है जो कभी राजद के लिए काम कर चुके हैं। सवाल अब यही है कि भाजपा क्या वाकई अलीनगर में राजद के भरोसे ही चुनाव जीतने का ख्वाब देखेगी?