
अविनाश पुष्पलता गोविंदराव आदिक
(राष्ट्रीय महासचिव एवं प्रवक्ता एनसीपी)
लोकनीति-सीएसडीएस के सह-निदेशक और प्रख्यात चुनाव विश्लेषक संजय कुमार द्वारा महाराष्ट्र के रामटेक और देवलाली जैसे विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता संख्या में भारी कमी या वृद्धि के दावों ने हाल ही में भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। 17 अगस्त 2025 को उनके द्वारा सोशल मीडिया मंच एक्स पर साझा किए गए आंकड़ों ने विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद), को चुनाव आयोग पर हमला बोलने का एक नया हथियार दे दिया। लेकिन जब आधिकारिक तथ्यों ने इन आंकड़ों को गलत साबित किया, तो संजय कुमार ने अपने पोस्ट हटाकर 19 अगस्त 2025 को सार्वजनिक माफी मांगी। इस घटना ने न केवल उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की पारदर्शिता और विपक्ष की रणनीति पर भी गहरी बहस छेड़ दी।
संजय कुमार ने अपने अब हटाए गए पोस्ट में दावा किया था कि रामटेक विधानसभा क्षेत्र में 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या 4,66,203 थी, जो विधानसभा चुनाव में घटकर 2,86,931 हो गई, यानी 38.45% की कमी। इसी तरह, देवलाली में मतदाता संख्या 4,56,072 से घटकर 2,88,141 हो गई, जो 36.82% की कमी दर्शाती थी। इसके विपरीत, नासिक पश्चिम और हिंगना जैसे क्षेत्रों में मतदाता संख्या में क्रमशः 47.38% और 43.08% की वृद्धि का दावा किया गया। इन आंकड़ों को लोकनीति-सीएसडीएस के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसने विपक्षी नेताओं, जैसे कांग्रेस के पवन खेड़ा और इमरान प्रतापगढ़ी, को ‘वोट चोरी’ का आरोप लगाने का मौका दिया। इन नेताओं ने इसे चुनाव आयोग की नाकामी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलीभगत का सबूत बताकर जोर-शोर से प्रचार किया। पवन खेड़ा ने तो व्यंग्यात्मक लहजे में पूछा कि क्या चुनाव आयोग यह कहेगा कि “2+2=420″।लेकिन जब आधिकारिक फॉर्म 20 के आंकड़ों ने संजय कुमार के दावों को खारिज कर दिया, तो उन्होंने माफी मांगते हुए कहा, “महाराष्ट्र चुनाव को लेकर किए गए ट्वीट्स के लिए मैं ईमानदारी से माफी मांगता हूं। 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के डेटा की तुलना में गलती हुई। हमारी डेटा टीम ने पंक्ति को गलत पढ़ लिया। ट्वीट को हटा दिया गया है। मेरा कोई इरादा गलत सूचना फैलाने का नहीं था।” इस माफी ने न केवल उनके दावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, बल्कि विपक्ष के ‘वोट चोरी’ के नैरेटिव को भी कमजोर कर दिया। कांग्रेस नेताओं ने बिना कोई खेद जताए अपने ट्वीट हटा लिए, जिसे कई लोगों ने नैतिक पतन का प्रतीक माना।इस घटना ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं। पहला, क्या संजय कुमार जैसे प्रतिष्ठित विश्लेषक और उनकी संस्था लोकनीति-सीएसडीएस इतनी बड़ी गलती कैसे कर सकती है? लोकनीति-सीएसडीएस भारत में चुनावी और सामाजिक सर्वेक्षणों के लिए एक सम्मानित नाम है, जिसने राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन (1998-2019) और दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की स्थिति जैसे महत्वपूर्ण अध्ययनों का नेतृत्व किया है। फिर भी, इतने संवेदनशील मुद्दे पर गलत आंकड़े प्रस्तुत करना और उसे बिना पर्याप्त जांच के सार्वजनिक करना गंभीर लापरवाही दर्शाता है। क्या यह केवल एक तकनीकी गलती थी, या जैसा कि भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने आरोप लगाया, यह पुष्टिकरण पक्षपात (कन्फर्मेशन बायस) का परिणाम था, जिसमें विपक्ष के नैरेटिव को समर्थन देने की जल्दबाजी में आंकड़ों की सत्यता को नजरअंदाज किया गया? दूसरा सवाल विपक्ष की रणनीति से जुड़ा है। राहुल गांधी और उनके सहयोगियों ने इस गलत डेटा का इस्तेमाल न केवल महाराष्ट्र में, बल्कि बिहार में चल रही ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के लिए भी किया। इस यात्रा का उद्देश्य बिहार में विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) प्रक्रिया को लेकर जनता में अविश्वास पैदा करना है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इन आरोपों को “निराधार” करार देते हुए राहुल गांधी से शपथपत्र देकर अपने दावों को साबित करने या माफी मांगने को कहा है। लेकिन विपक्ष ने इस मांग को नजरअंदाज करते हुए अपनी यात्रा जारी रखी है। यह रणनीति क्या वास्तव में जनता के हित में है, या केवल राजनीतिक लाभ के लिए अराजकता फैलाने का प्रयास है?भाजपा ने इस अवसर का पूरा फायदा उठाया। अमित मालवीय और शहजाद पूनावाला जैसे नेताओं ने संजय कुमार और कांग्रेस पर हमला बोलते हुए इसे “झूठा नैरेटिव” और “चुनाव आयोग पर हमला” करार दिया। उन्होंने मांग की कि राहुल गांधी और कांग्रेस महाराष्ट्र की जनता और देश से माफी मांगें। यह सही है कि विपक्ष का यह कदम जल्दबाजी में उठाया गया प्रतीत होता है, लेकिन भाजपा का इसे “घुसपैठियों को बचाने की यात्रा” कहना भी अतिशयोक्ति से कम नहीं है। दोनों पक्षों की यह बयानबाजी भारतीय लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाती है, जहां तथ्यों से ज्यादा भावनाएं और आरोप-प्रत्यारोप हावी हो रहे हैं।इस पूरे प्रकरण से यह भी साफ होता है कि सोशल मीडिया के युग में गलत सूचना कितनी तेजी से फैल सकती है और इसका राजनीतिक दुरुपयोग कैसे हो सकता है। संजय कुमार के पोस्ट ने हजारों लोगों तक पहुंच बनाई और विपक्ष ने इसे तुरंत हथियार बना लिया। लेकिन जब गलती सामने आई, तो उसका प्रभाव कम करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए। यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए और सावधानी बरतनी होगी।अंत में, यह विवाद भारतीय लोकतंत्र की मजबूती और कमजोरियों दोनों को उजागर करता है। एक ओर, चुनाव आयोग जैसे संस्थान अपनी पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए जाने जाते हैं, वहीं दूसरी ओर, गलत सूचना और राजनीतिक दुष्प्रचार इसे कमजोर करने की कोशिश करते हैं। संजय कुमार की माफी इस बात का संकेत है कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना लंबे समय तक टिक नहीं सकता। लेकिन विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों को यह समझना होगा कि जनता की आंखें अब खुली हैं। बिहार और महाराष्ट्र की जनता न केवल अपने वोट की ताकत को समझती है, बल्कि झूठ और सच्चाई के बीच अंतर करने में भी सक्षम है। इस घटना को एक सबक के रूप में लेते हुए सभी पक्षों को अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी ताकि भारतीय लोकतंत्र की गरिमा बनी रहे।
(लेखक के निजी विचार हैं।)