पलायन का दंश और आपदाओं में बिहारी मजदूरों की त्रासदी

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संजय प्रजापति
राष्ट्रीय कार्यसमिति सदस्य सह संयोजक नार्थईस्ट राज्य , एनसीपी

उत्तराखंड में बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद एक दुखद सत्य बार-बार सामने आता है—मरने वालों में सबसे ज्यादा बिहार के लोग क्यों होते हैं? चाहे वह केदारनाथ की त्रासदी हो, चमोली का हादसा हो, या हाल की गंगोत्री के पास धराली और हर्षिल में बादल फटने की घटना, हर बार बिहारी मजदूरों की मौत की खबरें सुर्खियां बनती हैं। यह महज संयोग नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता और पलायन की उस खौफनाक सच्चाई का परिणाम है, जो देश के विकास के ढांचे में गहरी जड़ें जमाए हुए है।बिहार से लाखों लोग रोजगार की तलाश में देश के कोने-कोने में पलायन करते हैं। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में ये लोग निर्माण कार्य, होटल, पर्यटन उद्योग और अन्य असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं। ये नौकरियां न केवल कम वेतन वाली होती हैं, बल्कि जोखिम भरी भी होती हैं। बादल फटने या भूस्खलन जैसी आपदाओं में नदी किनारे बने होटल, होमस्टे और निर्माण स्थल सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इन जगहों पर काम करने वाले बिहारी मजदूर अक्सर असुरक्षित परिस्थितियों में रहते हैं, जहां न तो सुरक्षा मानकों का पालन होता है और न ही आपदा के समय निकासी के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध होते हैं।आर्थिक मजबूरी इस पलायन का मूल कारण है। बिहार में औद्योगिक विकास सीमित है, और कृषि पर निर्भर अर्थव्यवस्था लाखों लोगों को रोजगार देने में सक्षम नहीं है। नतीजतन, युवा और मेहनतकश लोग बेहतर भविष्य की उम्मीद में अन्य राज्यों का रुख करते हैं। लेकिन वहां भी उनकी स्थिति बेहतर नहीं होती। कम मजदूरी, असुरक्षित कार्यस्थल और सामाजिक भेदभाव उन्हें और कमजोर बनाते हैं। प्राकृतिक आपदाओं में ये लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनके पास न तो सुरक्षित आवास होता है और न ही आपदा से बचने के लिए संसाधन।यह सवाल उठता है कि यह खौफनाक मंजर कब खत्म होगा? इसका जवाब जटिल है, लेकिन कुछ ठोस कदम इस दिशा में मदद कर सकते हैं। सबसे पहले, बिहार में रोजगार के अवसर बढ़ाने की जरूरत है। औद्योगिक विकास, ग्रामीण उद्यमिता और कौशल प्रशिक्षण जैसे कदम पलायन को कम कर सकते हैं। दूसरा, उत्तराखंड जैसे जोखिम वाले क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के लिए सुरक्षा मानकों को सख्त करना होगा। निर्माण स्थलों और पर्यटन क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन की योजना अनिवार्य होनी चाहिए। तीसरा, सरकार और समाज को मिलकर प्रवासी मजदूरों के कल्याण के लिए नीतियां बनानी होंगी, जैसे कि स्वास्थ्य बीमा, सुरक्षित आवास और आपदा के समय त्वरित सहायता।पलायन और आपदाओं में होने वाली मौतें केवल बिहार की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश की सामाजिक-आर्थिक नीतियों की विफलता का प्रतीक हैं। जब तक हम असमानता, गरीबी और अवसरों की कमी को दूर नहीं करेंगे, तब तक यह त्रासदी दोहराई जाती रहेगी। यह समय है कि हम न केवल आपदाओं से निपटने की रणनीति बनाएं, बल्कि उन कारणों को भी दूर करें जो लोगों को ऐसी जोखिम भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर करते हैं।

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