सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित ट्राइब्यूनल (NGT) के आदेश को रद्द किया: NGT की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल

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नई दिल्ली – माननीय सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में M/s C.L. Gupta Export Ltd. बनाम आदिल अंसारी मामले में राष्ट्रीय हरित ट्राइब्यूनल (NGT) के एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें NGT ने मुरादाबाद की एक हैंडिक्राफ्ट निर्यातक कंपनी पर अवैध भूजल दोहन, गंगा की सहायक नदियों में अनुपचारित अपशिष्ट जल डिस्चार्ज, और जल व वायु प्रदूषण अधिनियमों के उल्लंघन के आरोप में ₹50 करोड़ का पर्यावरणीय जुर्माना लगाया था। NGT ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत जांच शुरू करने का भी निर्देश दिया था।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. चंद्रन की खंडपीठ ने 25 अगस्त 2025 को अपने फैसले में निम्नलिखित आधारों पर NGT के आदेश को रद्द किया:
अधिकार क्षेत्र से परे कार्यवाही: NGT ने अपनी शक्तियों का अतिक्रमण किया, क्योंकि NGT अधिनियम, 2010 की धारा 15 केवल पर्यावरण संरक्षण, पुनर्स्थापन और मुआवजे के लिए नागरिक उपायों तक सीमित है। NGT को आपराधिक जांच शुरू करने या ED को PMLA के तहत कार्रवाई का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है, जब तक कि पर्यावरणीय उल्लंघन और मनी लॉन्ड्रिंग के बीच सीधा संबंध सिद्ध न हो।


मनमाना जुर्माना: ₹50 करोड़ का जुर्माना कंपनी के वार्षिक टर्नओवर (₹500 करोड़) के आधार पर लगाया गया, बिना पर्यावरणीय क्षति की मात्रा या उल्लंघन के अनुपात को स्थापित किए। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुआवजा वास्तविक क्षति पर आधारित होना चाहिए, न कि दंडात्मक।
अनावश्यक और असंगठित आदेश: NGT का 145 पेज का आदेश अनावश्यक रूप से लंबा, असंगत और कानूनी विश्लेषण से रहित था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “कानून का उल्लंघन” और अनुचित बताया।
हालांकि, कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा निगरानी और ऑडिट के NGT के निर्देशों को बरकरार रखा, जिससे स्वतंत्र कार्रवाई की संभावना बनी रही। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उन पिछले निर्णयों के अनुरूप है, जैसे कि ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम NGT (दिसंबर 2024), जहां प्रक्रियात्मक खामियों के कारण जुर्माने को रद्द किया गया था।
राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा (ट्रक ट्रांसपोर्ट सारथी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजकुमार यादव ने इस फैसले का स्वागत करते हुए NGT की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। डॉ. यादव ने कहा, “NGT अपने मूल उद्देश्य—पर्यावरण संरक्षण—से भटककर एक उगाही का माध्यम बन गया है, जो जमीनी सच्चाई से कोसों दूर है। ट्रक ट्रांसपोर्ट उद्योग पर NGT के कई आदेश, जैसे डीजल प्रतिबंध और उत्सर्जन मानक, अव्यवहारिक और अन्यायपूर्ण रहे हैं, जो परिवहन क्षेत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।”
डॉ. यादव ने आगे कहा, “सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला NGT को अपने अधिकार क्षेत्र में रहकर काम करने का स्पष्ट संदेश देता है। हम मांग करते हैं कि NGT पारदर्शी, तथ्य-आधारित और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाए, ताकि पर्यावरण संरक्षण और उद्योगों के बीच संतुलन बना रहे।”
राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा सरकार और संबंधित प्राधिकरणों से अपील करता है कि वे NGT के कामकाज की समीक्षा करें और यह सुनिश्चित करें कि पर्यावरणीय नीतियां उद्योगों, विशेषकर ट्रक ट्रांसपोर्ट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों, के लिए निष्पक्ष और व्यवहार्य हों।

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